कश्मीर सुलगती घाटी- समस्या और समाधान
कश्मीर जो भूमंडल का स्वर्ग बताया जाता था,
कश्मीर जिसकी मिट्टी का दुनिया मे अर्घ्य चढ़ाया जाता था ,
कश्मीर जो डूब गई अंधी गहरी खाई में ,
फूलों की घाटी रोती हैं, मरघट की तन्हाई में |
कवि हरिओम पंवार की ये 4 पंक्तियां , तस्वीर हैं घायल घाटी की, सच है ये धरती के स्वर्ग की और तमाचा है तमाम उन गालो पर जिनपे हमने मुल्क की बेहतरी का ज़िम्मा सौंप रखा है ।
भारत के नक्शे में सबसे ऊपर , ताज के शक्ल में मौजूद जम्मू और कश्मीर का आधा हिस्सा यानी कश्मीर घाटी , दुर्गम ख़तरों से घिरा लेकिन बेहद खूबसूरत । वर्ष के तीन चौथाई हिस्से में बर्फ से ढका रहता हैं , पर अक्सर सफेद बर्फ पे दिख जाते है लाल धब्बे , खुन के ओ सूर्ख लाल धब्बे जो कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं लगातार ।
इसके केंद्र में है इन समस्याओं से अपनी रोज़ी रोटी कमाते चंद लोग और राजनीतिक रोटी सेंकते उनके आका , जिसमें पीस रहे है आज़ाद भारत के अखण्ड हिस्से कश्मीर में बसे आम भारतीय और देश के सुदूर कोनों से भारत माँ की रक्षा में आए राष्ट्रवाद के प्रबल प्रवर्तक बेटे यानी भारतीय सेना के जवान ।
आँकड़ो पे गौर फरमाएं तो पिछले कुछ सालों में घाटी में हो रही हिंसक घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई हैं और इसके केंद्र में आ खड़ी हुई है पत्थरबाजी और पैलेट गन की बहस । इन तमाम चीज़ो को समझने की लिए आवश्यक हैं हमारा मामले के तह में जाना , हमारा यह समझना की सही और गलत सफेद और काले के परत के बीच मे छिपा हैं । बहुत सारे मसले है जिसने धरती के स्वर्ग को रहने के लिए सबसे दुर्गम जगहों में से एक बना दिया हैं।
कश्मीर समस्या के अध्ययन पर सबसे पहले हम समस्या के मूल वजह पर पहुचते है जो है धारा 370 , हालांकि तब ये कश्मीर के भारत में विलय के लिए आवश्यक शर्तों में से एक था । लेकिन वर्तमान में दर्जनों ऐसी वजह हैं जिनके निवारण से घाटी में न सिर्फ शान्ति लौटेंगी बल्कि दुबारा हम गर्व से कह सकेंगे कि " धरती का स्वर्ग हमारे मुल्क में है " ।
घाटी में युवाओं की तादाद बहुतेरी है ,जिन्हें तमाम ताकतों द्वारा दिग्भर्मित करके अपने ही मुल्क के खिलाफ हथियार बना दिया गया है उनमें धर्म के नाम भरा गया है ऐसा जहर जो मुल्क के लिए तो ख़तरा है ही पर साथ ही है घाटी के लिए विध्वंसक । कश्मीर घाटी में साक्षरता दर 63% के आसपास है लेकिन दसवीं तक तालिम हासिल करने वालों की संख्या घट के 23% पर आ जाती है ये सबसे बड़ी वजह है जिससे युवाओं के कच्चे मस्तिष्क में मज़हबी ज़हर भरा जाता है ।
कश्मीर समस्या में अपने आप को एक पक्षकार मानने वाले हुर्रियत और अलगाववादी नेताओं का इसमें बडा हाथ है ।
अलगाववादी नेता खुद तो ऐशोआराम का जीवन जी रहे हैं , और अपने बच्चों को विदेश में पढ़ा रहे हैं , लेक़िन घाटी के एक पूरी पीढ़ी को हिंसा की आग में झोंक दिया हैं ।
और आश्चर्य की बात यह है कि इनकी फाउंडिंग गैरकानूनी विदेशी स्रोतों के अलावा हमारी सता प्रतिस्वाने , हमारी सरकारें भी कर रही हैं । घाटी में चल रहे जहर बोने के इन केंद्रों को अगर निस्तोनाबूद करना है तो आवश्यक है इन विषैले नागों पे काबू करना ।
घाटी में हिंसा के पीछे दी जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी वज़ह है पाकिस्तान , कहा जाता है कि कश्मीर में पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद ने स्तिथि ख़राब की है , तो इसपर हम सभी मुल्कवासियों का एक सवाल बनता है हमारे हुक्मरानों से की पाक को लेकर हमारा रुख़ क्या है , क्यों एक दुश्मन मुल्क से अस्पष्ट रिश्तों की वजह से हम अपने देश के नागरिकों को अपनी ही सेना के सामने खड़ा होने का मौका दे रहे है । पकिस्तान के पर कतरने की जरूरत है । अब आप बताइए कि अगर पाकिस्तान से प्याज़ नही आया तो भूखे मर जाएंगे , आपमें से कितने ऐसे है जो पाकिस्तान से कपास नहीं आयी तो सर्दी से मर जाएंगे । हम महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी , भगत सिंह , चंद्र शेखर आज़ाद के मुल्क से है , हमें चुनौतियों से लड़ना आता है , फिर भी दिल्ली की मौन दरबारे कश्मीर के खून से रंगते चेहरे को चुपचाप देख रही है ।
हाँ यह सच है कि कश्मीर में सबकुछ एकतरफा नहीं है , युवा और तमाम लोग बुरी तरह से भ्रमित है लेकिन आवश्यकता है एक सार्थक संवाद स्थापित करने की ओर , उन्हें यह एहसास दिलाने की पत्थर , गोलियां , मशीनगनों और ग्रेनेड से हासिल कुछ नही होने वाला । इनसे सबसे बड़ा नुकसान अगर किसी का है तो स्वयं कश्मीरी जनमानस का ।
एक पल के लिए मैन भी ले कि कश्मीर भारत से अलग एक स्वतंत्र इकाई बन भी जाए तो वहाँ जबरदस्त पॉवर शुन्यता होगी और ये आकर्षित करेगी विदेशी हमलावरो को जो घाटी को मौत के दलदल में बदल देगी ।
जिन्हें भी ये लगता है की 'युद्ध' , 'बल' , 'हमला' , समाधान है उन्हें चेत जाने की जरूरत है । युद्ध की संभावना में जी रहे सब लोग सुन लें युद्ध भी है , बुद्ध भी है , जिसे चाहे चुन ले ।
सार्थक संवाद के दम पर अगर हम इन युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने में कामयाब हो गए तो चरमपंथी ताक़तों की जड़े स्वयं उखड़नी शुरू हो जाएंगी । बाह्य आतंक कभी भी एक बड़ा विषय नहीं रहा हैं , क्योंकि हमारी सेना उनसे निपटने में सक्षम है लेकिन किसी अपने देशवासी कश्मीरी पर गोली चलाने के पहले उस जवान की बंदूक भी रोती है और अपने देशवासी के हाथ से चल जवानों के ख़ून बहाने वाले वे पत्थर भी ।
देश के बाकी हिस्से के लोगों को भी अपने बाँहे फैलानी होगी उन कश्मीर वासियों के लिए , जैसे कोई पंजाबी फ़ैलता किसी दिल्ली वाले के लिए , जैसे कोई गुजराती फ़ैलता है किसी मराठी के लिए , एकदम वैसे ही बिना किसी फ़र्क के बस तभी हम दे पाएंगे एक ऐसा कश्मीर जहाँ 7 के बजाय 70 प्रतिशत मतदान होगा , जहाँ बुरहान बानी के बजाय शाह फैज़ल या परवेज़ रसल हीरो होंगे , जहाँ की वादियों में आतंकी नहीं विदेशी पर्यटक घूमेंगे जहाँ बम की जगह टपकेंगे पेड़ो से सेब , लाल कश्मीरी सेब ।और इस तरह बनेगा धरती का स्वर्ग , फिर से । यक़ीन मानिए असंवभ कुछ भी नहीं है , क्योंकि दुष्यंत कुमार ने कहा था-
" रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
।
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